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रिश्तों की डोर

रिश्तों की डोर

आती हुईं हवाओं को तुम
निर्बाध रूप से बहने दो
कुछ सवालों को तुम
बस सवाल ही रहने दो।
कुछ अपनी सुनाओं और 
कुछ रिश्तेदारों को भी कहने दो
हर हाल में रिश्तों की डोर को 
मजबूत बनाते हुए चलो।
यकीन करना कितना मुश्किल होता है 
एक बार टूट जाए तो दोबारा कहा होता है 
किसको समझाएं या खुद को तसल्ली दे
ये साँसे तो आखिर बहल जाती है।
आदमी तो बिलकुल बहुरूपिया होता है 
न जाने इसके कितने रूप है 
अमानवता की राह पर न चलो
रिश्तों की डोर मजबूत बनाते हुए चलो।
इस बात से, न जाने लोग क्यों है अनजान
जो रिश्तों को अहमियत नही देता है 
वो मानव आज मानव न रहकर
पशुतर जीवन जी रहा है।
जिंदगी की तजुर्बा से सीख लो सज्जनों
तुम मत बनो गैर, अपनो के लिए 
मजबूत रिश्तों की डोर ही 
आगे बढ़ने में मदद पहुंचाता है।

नूतन लाल साहू

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2 Comments

hema mohril

23-May-2024 10:48 AM

Amazing

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Gunjan Kamal

22-May-2024 08:24 PM

बहुत खूब

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